सूक्ष्मवेद का रहस्य (Secret of Sukshma Veda)
वेद का अर्थ ज्ञान है। चार वेद पहले एक ही वेद (ज्ञान) था। ऋषि कृष्ण द्वैपायन पुत्रा ऋषि पारासर ने इसको चार भागों में विभाजित करके ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद नाम दिए। जिस कारण ऋषि जी को वेद व्यास कहा जाने लगा जिसका अर्थ है ‘‘वेद विभाजक’’। चारों वेदों में ऋषि वेदव्यास जी ने कुछ नहीं मिलाया। केवल चार भाग किए हैं। चारों वेद तथा सूक्ष्मवेद पूर्ण परमात्मा यानि परम अक्षर ब्रह्म (सत पुरूष) जी ने प्रदान किए हैं। आगे विस्तार से वर्णन किया जाता है:-
पहले पुराण भी एक बोध (ज्ञान) था जो श्री ब्रह्मा जी ने अपने कुल के दक्ष तथा मनु आदि ऋषियों को सुनाया था जिसमें अपनी उत्पत्ति के पश्चात् का घटनाक्रम बताया था। पुराणों में श्री ब्रह्मा जी ने कुछ वेद ज्ञान तथा अधिक अपना अनुभव बताया है। पुराणों का जो ज्ञान वेदों से मेल करता है, वह ब्रह्मा जी का बताया है। बाद में ऋषियों ने पुराण बोध के अठारह भाग बना दिए। प्रत्येक ऋषि ने श्री ब्रह्मा जी से सुने ज्ञान में अपना अनुभव जोड़कर विस्तार किया है। पुराणों में श्राद्ध-पिण्डदान, मूर्ति पूजा आदि-आदि तथा कुछ मंत्रा जाप ऋषियों ने लिख दिए तथा काल ब्रह्म यानि सदाशिव ने भ्रमित करने के लिए शिव लिंग पूजा आदि बताए हैं जो वेद विरूद्ध होने से मान्य नहीं हैं तथा व्यर्थ साधना है। अध्यात्म को समझने के लिए पुराणों का ज्ञान होना आवश्यक है। वेद तथा उन्हीं का सारांश श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान पूर्ण ब्रह्म ने दिया है, वह सत्य है। मान्य है तथा लाभदायक तथा मोक्षदायक है।