अंध श्रद्धा भक्ति खतरा-ए-जान - भूमिका (Background - Andh Shradha Bhakti)
अंध श्रद्धा का अर्थ है बिना विचार-विवेक के किसी भी प्रभु में आस्था करके उसे प्राप्ति की तड़फ में पूजा में लीन हो जाना। फिर अपनी साधना से हटकर शास्त्र प्रमाणित भक्ति को भी स्वीकार न करना। दूसरे शब्दों में प्रभु भक्ति में अंधविश्वास को ही आधार मानना। जो ज्ञान शास्त्रों के अनुसार नहीं होता, उसको सुन-सुनाकर उसी के आधार से साधना करते रहना। वह साधना जो शास्त्रों के विपरीत है, बहुत हानिकारक है। अनमोल मानव जीवन नष्ट हो जाता है। जो साधना शास्त्रों में प्रमाणित नहीं है, उसे करना तो ऐसा है जैसे आत्महत्या कर ली हो। आत्म हत्या करना महापाप है। इसमें अनमोल मानव जीवन नष्ट हो जाता है।
इसी प्रकार शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण करना यानि अज्ञान अंधकार के कारण अंध श्रद्धा के आधार से भक्ति करने वाले का अनमोल मानव (स्त्री-पुरूष का) जीवन नष्ट हो जाता है क्योंकि पवित्र श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में बताया है कि:-
जो साधक शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है यानि किसी को देखकर या किसी के कहने से भक्ति साधना करता है तो उसको न तो कोई सुख प्राप्त होता है, न कोई सिद्धि यानि भक्ति की शक्ति प्राप्त होती है, न उसकी गति होती है। (गीता अध्याय 16 श्लोक 23)
इन्हीं तीन लाभों के लिए साधक साधना करता है जो मनमानी शास्त्र विरूद्ध साधना से नहीं मिलते। इसलिए अंध श्रद्धा को त्यागकर अपने शास्त्रों में वर्णित भक्ति करो।
गीता अध्याय 16 श्लोक 24:- इसमें स्पष्ट किया है कि ‘‘इससे तेरे लिए अर्जुन! कर्तव्य यानि जो भक्ति क्रियाऐं करनी चाहिए तथा अकर्तव्य यानि जो भक्ति क्रियाऐं नहीं करनी चाहिए, की व्यवस्था में शास्त्रों में वर्णित भक्ति क्रियाऐं ही प्रमाण है यानि शास्त्रों में बताई साधना कर। जो शास्त्र विपरीत साधना कर रहे हो, उसे तुरंत त्याग दो।’’
इस पुस्तक में आप जी को कर्तव्य यानि जो साधना करनी चाहिए और जो अकर्तव्य है यानि त्यागनी चाहिए, सब विस्तार से शास्त्रों से प्रमाणों सहित पढ़ने को मिलेंगी। अपने पवित्र धर्मग्रन्थों के प्रमाणों को इस पुस्तक में पढ़ें और फिर शास्त्रों से मेल करें। आँखों देखकर तुरंत शास्त्रा विरूद्ध साधना त्यागकर शास्त्राविधि अनुसार साधना मेरे (लेखक के) पास आकर प्राप्त करें।
आप जी को स्पष्ट कर दूँ कि वर्तमान में पूरे विश्व में मेरे (रामपाल दास के) अतिरिक्त शास्त्रों के अनुसार सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान तथा सम्पूर्ण भक्ति विधि किसी के पास नहीं है। यह आप जी को इस पवित्र पुस्तक ‘‘अंध श्रद्धा भक्ति खतरा-ए-जान’’ के पढ़ने से स्वतः विश्वास हो जाएगा। यदि कोई आँखों देख-पढ़कर भी शास्त्र विधि विरूद्ध साधना नहीं त्यागेगा और शास्त्रविधि अनुसार प्रारम्भ नहीं करेगा तो वह भक्ति करना नहीं चाहता।
कबीर जी ने ऐसे व्यक्ति के विषय में कहा है कि:-
कबीर, जान बूझ साची तजै, करै झूठ से नेह।
ताकि संगति हे प्रभु, स्वपन में भी ना दे।।
शब्दार्थ:- जो आँखों देखकर भी सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह शुभकर्म हीन प्राणी है। ऐसे व्यक्ति से मिलना भी उचित नहीं है। जाग्रत की तो बात छोड़ो, ऐसे कर्महीन व्यक्ति (स्त्री-पुरूष) से तो स्वपन में भी सामना ना हो।
फिर कबीर जी ने कहा है कि:-
ऐसा पापी प्रभात ना भैंटो, मुख देखें पाप लगै जाका।
नौ-दश मास गर्भ त्रास दई, धिक्कार जन्म तिस की माँ का।।
शब्दार्थ:- ऐसा निर्भाग व्यक्ति सुबह-सुबह ना मिले। ऐसे का मुख देखने से भी पाप लगता है। उसने तो अपनी माता जी को भी व्यर्थ में नौ-दस महीने गर्भ का कष्ट दिया। उसने अपनी माता का जन्म भी व्यर्थ कर दिया। कबीर जी ने फिर कहा है कि:-
कबीर, या तो माता भक्त जनै, या दाता या शूर।
या फिर रहै बांझड़ी, क्यों व्यर्थ गंवावै नूर।।
शब्दार्थ:- कबीर जी ने कहा है कि या तो जननी भक्त को जन्म दे जो शास्त्र में प्रमाण देखकर सत्य को स्वीकार करके असत्य साधना त्यागकर अपना जीवन धन्य करे। या किसी दानवीर पुत्र को जन्म दे जो दान-धर्म करके अपने शुभ कर्म बनाए। या फिर शूरवीर बालक को जन्म दे जो परमार्थ के लिए कुर्बान होने से कभी न डरता हो। सत्य का साथ देता है, असत्य तथा अत्याचार का डटकर विरोध करता है। उसके चलते या तो स्वयं मर जाता है या अत्याचारी की सेना को मार डालता है। अपने उद्देश्य से डगमग नहीं होता। यदि ऐसी अच्छी संतान उत्पन्न न हो तो निःसंतान रहना ही माता के लिए शुभ है। पशुओं जैसी संतान को गर्भ में पालकर अपनी जवानी को क्यों नष्ट करे यानि निकम्मी संतान गलती करके माता-पिता पर 304 B का मुकदमा बनवाकर जेल में डलवा देती है। इससे तो बांझ रहना ही उत्तम है।
सर्व मानव समाज से करबद्ध नम्र निवेदन है कि आप सब शास्त्रों के विरूद्ध साधना कर रहे हो। इस पवित्र पुस्तक को पढ़कर सत्य से परिचित होकर अपना अनमोल मानव (स्त्री-पुरूष का) जीवन धन्य बनाओ। अपना कल्याण करवाओ।
।। सत साहेब।।
सर्व का शुभचिंतक
लेखक
दासन दास रामपाल दास
पुत्र/शिष्य स्वामी रामदेवानंद जी
सतलोक आश्रम बरवाला
जिला-हिसार, हरियाणा (भारत)