हिन्दू धर्म में प्रचलित शास्त्र विरूद्ध धार्मिक साधना (Arbitrary Worship in Hindu Religion)
विश्व में धार्मिक व्यक्तियों की भरमार है। प्रत्येक धर्म के अनुयाई अपनी साधना को सत्य मानकर पूर्ण श्रद्धा तथा लगन के साथ समर्पित भाव से कर रहे हैं। एक-दूसरे को देखकर या सुनकर धार्मिक क्रियाऐं करने लग जाते हैं। विशेष जाँच नहीं करते। यही कारण है कि आध्यात्मिक लाभ से वंचित रहते हैं। एक पूजा से लाभ नहीं होता तो किसी के कहने से अन्य शुरू कर देते हैं। यदि हम कोई व्यापार या धंधा करने का विचार करते हैं तो पहले उसकी सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं।
उदाहरण के लिए हम कोई कोर्स करते हैं जैसे डाॅक्टरी, इन्जीनियरिंग, बैंक में नौकरी पाने के लिए कोई पढ़ाई करते हैं, कोई व्यापार या अन्य रोजगार के लिए धंधा करते हैं तो उससे होने वाले लाभ से परिचित होते हैं। पूर्ण विश्वास होने पर तन-मन-धन से सफलता के लिए प्रयत्न करते हैं। परंतु धार्मिक लाभ लेने के लिए हम विवेक के स्थान पर एक-दूसरे से सुनी धार्मिक क्रिया करते हैं या किसी को देखकर उसका अनुसरण करने लगते हैं। उन धार्मिक क्रियाओं की सत्यता के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं समझते। सर्वप्रथम विश्व के पुराने धर्म यानि सनातन पंथ (जिसे वर्तमान में हिन्दू धर्म कहते हैं) के विषय में चर्चा करते हैं।
पवित्र हिन्दू धर्म को मानने वाले श्रद्धालु धार्मिकता से ओत-प्रोत हैं। जो मानव (स्त्राी-पुरूष) परमात्मा के प्रति तड़फ रखता है, यह उसके पूर्व जन्म के भक्ति कर्मों की शक्ति के कारण है। वह भक्ति किए बिना रह नहीं सकता। बचपन में जो घर-परिवार व क्षेत्र में किसी देवी-देवता या बाबा, सिद्ध, नाथ व सती जी की साधना-पूजा की परंपरा चल रही होती है, उसे पूरी लगन से करता है। बड़ा होने पर किसी से सुन लेता है कि देवी की पूजा के लिए वैष्णों देवी मन्दिर मे दर्शनार्थ जाना बहुत लाभदायक है तो वह साधक अविलम्ब वहाँ जाने लगता है। उसके पश्चात् कभी किसी सन्त का शिष्य मिल जाता है तो उस साधक को गुरु धारण करने की प्रेरणा करता है। बताता है कि गुरु बिन मोक्ष नहीं होता। परमात्मा के लिए तड़फ रहा श्रद्धालु बिना विवेक किए उस गुरु के शिष्य के साथ जाकर उसी के गुरु से दीक्षा लेकर अपने को धन्य मान लेता है। विचार करता है कि मेरा जीवन धन्य हो गया। उस संत ने भी उन्हीं देवी-देवताओं को ईष्ट रूप में मानकर उनकी पूजा करने की दीक्षा दे दी। एक-दो मन्त्रा (हरे-राम, हरे-कृष्ण या ओम् भगवते वासुदेवाय् नमः, ओम् नमः शिवाय या गायत्री मन्त्र) का जाप करने को कह दिया। श्राद्ध करना, पिण्डदान करना, आदि भी आवश्यक बताया। श्री विष्णु जी और उसी के अन्य स्वरूप व अवतार-गण श्री राम, श्री कृष्ण को ईष्ट रूप में मानना, वैष्णव देवी तथा ज्वाला जी व अन्य नैना देवी, बाला जी की पूजा व श्री शंकर जी भगवान की पूजा करने की राय दे दी। साधक (शिष्य) गुरु जी के आदेश से सब धार्मिक क्रियाऐं करने लग जाता है। उसने मान रखा होता है कि जो धार्मिक साधना पूज्य गुरु जी ने मुझे बताई है, ये हिन्दू धर्म के शास्त्रों से ही बताई हैं क्योंकि गुरु जी संस्कृत भाषा को अच्छी तरह पढ़ते हैं और गीता, वेदों, पुराणों के पूर्ण ज्ञाता हैं। इन्हीं शास्त्रों का हवाला देकर कई बार अपनी धार्मिक साधना की सत्यता प्रमाणित करते हैं। इसीलिए पूरे हिन्दू धर्म को मानने वाले उपरोक्त तथा पूर्वोक्त साधना करते हैं जो मोक्षदायक नहीं है। गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार उनको न तो सुख की प्राप्ति होती है, न सिद्धि प्राप्त होती है, न उनकी गति यानि मुक्ति होती है यानि व्यर्थ है। जिससे उनका अनमोल जीवन नष्ट हो रहा है।