श्राद्ध करने की श्रेष्ठ विधि (Best Way to Perform Shraadh)

श्री विष्णु पुराण के तीसरे अंश में अध्याय 15 श्लोक 55-56 पृष्ठ 153 पर लिखा है कि श्राद्ध के भोज में यदि एक योगी यानि शास्त्रोक्त साधक को भोजन करवाया जाए तो श्राद्ध भोज में आए हजार ब्राह्मणों तथा यजमान के पूरे परिवार सहित तथा सर्व पितरों का उद्धार कर देता है।

विवेचन:- मेरे (लेखक के) तत्वज्ञान को सुन-समझकर भक्त दीक्षा लेकर साधना करते हैं। ये योगी यानि शास्त्रोक्त साधक हैं। हम सत्संग समागम करते हैं। उसमें भोजन-भण्डारा (लंगर) भी चलाते हैं। जो व्यक्ति उस भोजन-भण्डारे में दान करता है। उससे बने भोजन को योगी यानि मेरे शिष्य तथा यह दास (लेखक) सब खाते हैं। यह दास (लेखक) सत्संग सुनाकर नए व्यक्तियों को यथार्थ भक्ति ज्ञान बताता है। शास्त्रों के प्रमाण प्रोजेक्टर पर दिखाता है। जिस कारण से श्रोता शास्त्र विरूद्ध साधना त्यागकर शास्त्रोक्त साधना करते हैं। इस प्रकार उस परिवार का उद्धार हुआ। उनके द्वारा दिए दान से बने भोजन को भक्तों ने खाया। इससे पितरों का उद्धार हुआ। पितर जूनी छूटकर अन्य जन्म मिल जाता है। सत्संग में यदि हजार ब्राह्मण भी उपस्थित हों तो वे भी सत्संग सुनकर शास्त्र विरूद्ध साधना त्यागकर अपना कल्याण करवा लेंगे। जैसे आप जी ने पहले पढ़ा कि कबीर जी ने गंगा के तट पर ब्राह्मणों को ज्ञान देकर उनकी शास्त्र विरूद्ध साधना को गलत सिद्ध करके सत्य साधना के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने सतगुरू कबीर जी से दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाया। अन्य साधना जो शास्त्रों के विरूद्ध थी, त्याग दी। सुखी हुए।

दास की प्रार्थना है कि वर्तमान में मानव समाज शिक्षित है, वह अवश्य ध्यान दे तथा शास्त्र विधि अनुसार साधना करके पूर्ण परमात्मा के सनातन परमधाम (शाश्वतम् स्थानम्) अर्थात् सतलोक को प्राप्त करे जिससे पूर्ण मोक्ष तथा परम शान्ति प्राप्त होती है।(गीता अध्याय 15 श्लोक 4 तथा अध्याय 18 श्लोक 62 में जिसको प्राप्त करने के लिए कहा है।) इसके लिए तत्वदर्शी संत की तलाश करो। (गीता अध्याय 4 श्लोक 34 )

एक श्रद्धालु ने कहा कि मैं आप से उपदेश लेकर आप द्वारा बताई साधना भी करता रहूँगा तथा श्राद्ध भी निकालता रहूँगा तथा अपने घरेलू देवी-देवताओं को भी उपरले मन से पूजता रहूँगा। इसमें क्या दोष है?

मुझ दास की प्रार्थना:- संविधान की किसी भी धारा का उल्लंघन कर देने पर सजा अवश्य मिलेगी। इसलिए पवित्र गीता जी व पवित्र चारों वेदों में वर्णित व वर्जित विधि के विपरीत साधना करना व्यर्थ है। (प्रमाण पवित्र गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23-24 में) यदि कोई कहे कि मैं कार में पैंचर उपरले मन से कर दूंगा। नहीं, राम नाम की गाड़ी में पैंचर करना मना है। ठीक इसी प्रकार शास्त्र विरुद्ध साधना हानिकारक ही है।

एक श्रद्धालु ने कहा कि मैं और कोई विकार (मदिरा-मास आदि सेवन) नहीं करता। केवल तम्बाखू (बीड़ी-सिगरेट-हुक्का) सेवन करता हूँ। आपके द्वारा बताई पूजा व ज्ञान अति उत्तम है। मैंने गुरु जी भी बनाया है, परन्तु यह ज्ञान आज तक किसी संत के पास नहीं है, मैं 25 वर्ष से घूम रहा हूँ तथा तीन गुरुदेव बदल चुका हूँ। कृप्या मुझे तम्बाखू सेवन की छूट दे दो, शेष सर्व शर्ते मंजूर हैं। तम्बाखू से भक्ति में क्या बाधा आती है?

लेखक की प्रार्थना:- दास ने प्रार्थना की कि अपने शरीर को ऑक्सीजन की आवश्यकता है। तम्बाखू का धुआँ कार्बन-डाई-ऑक्साइड है जो फेफड़ों को कमजोर व रक्त दूषित करता है। मानव शरीर प्रभु प्राप्ति व आत्म कल्याण के लिए ही प्राप्त हुआ है। इसमें परमात्मा पाने का रस्ता सुष्मना नाड़ी से प्रारम्भ होता है। जो नाक के दोनों छिद्र हैं उन्हें दायें को ईड़ा तथा बाऐं को पिंगुला कहते हैं। इन दोनों के मध्य में सुष्मणा नाड़ी है जिसमें एक छोटी सूई (दममकसम) में धागा पिरोने वाले छिद्र के समान द्वार होता है जो तम्बाखू के धुऐं से बंद हो जाता है। जिससे प्रभु प्राप्ति के मार्ग में अवरोध हो जाता है। यदि प्रभु पाने का रस्ता ही बन्द हो गया तो मानव शरीर व्यर्थ हुआ। इसलिए प्रभु भक्ति करने वाले साधक के लिए प्रत्येक नशीले व अखाद्य (माँस आदि) पदार्थों का सेवन निषेध है।

एक श्रद्धालु ने कहा कि मैं तम्बाखु प्रयोग नहीं करता। माँस व मदिरा सेवन जरूर करता हूँ। इससे भक्ति में क्या बाधा है? यह तो खाने-पीने के लिए ही बनाई है तथा पेड़-पौधों में भी तो जीव है, वह खाना भी तो मांस भक्षण तुल्य ही है।

दास की प्रार्थना:- यदि कोई हमारे माता-पिता-भाई-बहन व बच्चों आदि को मारकर खाए तो कैसा लगे?

जैसा दर्द आपने होवै, वैसा जान बिराने।
कहै कबीर वे जाऐं नरक में, जो काटें शिश खुरांनें।।

जो व्यक्ति पशुओं को मारते समय खुरों तथा शीश को बेरहमी से काट कर माँस खाते हैं, वे नरक के भागी होंगे। जैसा दुःख अपने बच्चों व सम्बन्धियों की हत्या का होता है, ऐसा ही दूसरे को जानना चाहिए। रही बात पेड़-पौधों को खाने की। इनको खाने का प्रभु का आदेश है तथा ये जड़ जूनी के हैं। अन्य चेतन प्राणियों का वध प्रभु आदेश विरुद्ध है, इसलिए अपराध (पाप) है।

मदिरा सेवन भी प्रभु आदेश नहीं है, परन्तु स्पष्ट मना है तथा मानव जीवन को बर्बाद करने का है। शराब पान किया हुआ व्यक्ति कुछ भी गलती कर सकता है। मदिरा पान धन-तन व पारिवारिक शान्ति तथा समाज सभ्यता की महाशत्रु है। प्यारे बच्चों के भावी चरित्र पर कुप्रभाव पड़ता है। मदिरा पान करने वाला व्यक्ति कितना ही नेक हो परन्तु उसकी न तो इज्जत रहती है तथा न ही विश्वास।

एक समय यह दास एक गाँव में सत्संग करने गया हुआ था। उस दिन नशा निषेध पर सत्संग किया। सत्संग के उपरान्त एक ग्यारह वर्षीय कन्या फूट-फूट कर रोने लगी। पूछने पर उस बेटी ने बताया कि महाराज जी मेरे पिता जी पालम हवाई अड्डे पर बढ़िया नौकरी करते हैं। परन्तु सर्व पैसे की शराब पी जाते हैं। मेरी मम्मी के मना करने पर इतना पीटते हैं कि शरीर पर नीले दाग बन जाते हैं। एक दिन मेरे पापा जी मेरी मम्मी को पीटने लगे। मैं अपनी मम्मी के ऊपर गिर कर बचाव करने लगी तो मुझे भी पीटा। मेरा होंठ सूज गया। दस दिन में ठीक हुआ। मेरी मम्मी जी हमें छोड़ कर मेरे मामा जी के घर चली गई। छः महीने में मेरी दादी जी जाकर लाई। तब तक हम अपनी दादी जी के पास रहे। पापा जी ने दवाई भी नहीं दिलाई। सुबह शीघ्र ही उठकर नौकरी पर चला गया। शाम को शराब पीकर आता। हम तीन बहनें हैं, दो मेरे से छोटी हैं। अब जब पापा जी शाम को आते हैं तो हम तीनों बहनें चारपाई के नीचे छुप जाती हैं।

विचार करो पुण्यात्माओं! जिन बच्चों को पिताजी ने सीने से लगाना चाहिए था तथा बच्चे पिता जी के घर आने की राह देखते हैं कि पापा जी घर आयेंगे, फल लायेंगे। आज इस मानव समाज की दुश्मन शराब ने क्या घर घाल दिए? शराबी व्यक्ति अपनी तो हानि करता है साथ में बहुत व्यक्तियों की आत्मा दुःखाने का भी पाप सिर पर रखता है। जैसे पत्नी के दुःख में उसके माता-पिता, बहन-भाई दुःखी, फिर स्वयं के माता-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी आदि परेशान। एक शराबी व्यक्ति आस-पास के भद्र व्यक्तियों की अशान्ति का कारण बनता है क्योंकि घर में झगड़ा करता है। पत्नी व बच्चों की चिल्लाहट सुनकर पड़ौसी बीच-बचाव करें तो शराबी गले पड़ जाऐ, नहीं करें तो नेक व्यक्तियों को नींद नहीं आए। इस दास से उपदेश लेने के उपरान्त प्रतिदिन शराब पीने वाले लगभग एक लाख व्यक्तियों ने सर्व नशीले पदार्थ व मांस भक्षण पूर्ण रूप से त्याग दिया है तथा जिस समय शाम को शराब प्रेतनी का नृत्य होता था, अब वे पुण्यात्मायें अपने बच्चों सहित बैठकर संध्या आरती करते हैं। हरियाणा प्रदेश व निकटवर्ती प्रान्तों में लगभग दस हजार गाँवों व शहरों में आज भी प्रत्येक में चार -पाँच चैम्पियन (एक नम्बर के शराबी) उदाहरण हैं जो सर्व विकारों से रहित होकर अपना मानव जीवन सफल कर रहे हैं। कुछ कहते हैं कि हम इतनी नहीं पीते-खाते, बस कभी ले लेते हैं। जहर तो थोड़ा ही बुरा है, जो भक्ति व मुक्ति में बाधक है।

मान लिजिए दो किलो ग्राम घी का हलवा बनाया (सतभक्ति की)। फिर 250 ग्राम बालु रेत(तम्बाखु-मांस-मदिरा सेवन व आन उपासना कर ली) भी डाल दिया। वह तो किया कराया व्यर्थ हुआ। इसलिए पूर्ण परमात्मा (परम अक्षर ब्रह्म) की पूजा पूर्ण संत से प्राप्त करके आजीवन मर्यादा में रहकर करते रहने से ही पूर्ण मोक्ष लाभ होता है।

उपरोक्त प्रमाणों को पढ़कर बुद्धिजीवी समाज विचार करे और अंध श्रद्धा भक्ति त्यागकर सत्य श्रद्धा करके जीवन धन्य बनाऐं।

दास (लेखक) के परमार्थी प्रयत्न को आलोचना न समझें। मेरा उद्देश्य आप जी को शास्त्रोक्त भक्ति साधना बताकर आपके ऊपर भविष्य में आने वाले पर्वत जैसे कष्ट (चौरासी लाख प्रकार के प्राणियों के शरीरों में कष्ट उठाने तथा नरक जाने से) से बचाना है। मेरे अनुयाई इस तत्वज्ञान से परिचित हैं। वे भी आप तक मेरे द्वारा लिखी पुस्तक पहुँचाकर आपके भविष्य को सुखी बनाने के उद्देश्य से वितरित करते हैं। परंतु कुछ धर्मोंन्ध व्यक्ति अपने स्वार्थवश आप और परमेश्वर के बीच में दीवार बनकर खड़े हैं। मेरे को तथा मेरे अनुयाईयों पर झूठे आरोप लगाकर बदनाम करते हैं। आप जी अपनी आँखों प्रमाण देखो और सत्य की राह पकड़ो। हमारा उद्देश्य है कि हम संसार के लोगों को बुराईयों-कुरीतियों से दूर करके सुखी देखना चाहते हैं। हम अपना प्रयत्न जारी रखेंगे। आप कब समझेंगे? इंतजार करेंगे।

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