प्रसंग चल रहा है कि सूक्ष्मवेद तथा चारों वेदों का ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ?

गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में संकेत किया है कि परम अक्षर ब्रह्म अपने मुख से बोली वाणी में समस्त आध्यात्मिक क्रियाओं (यज्ञों) का वर्णन करता है। वह तत्वज्ञान (सूक्ष्मवेद) है। इसको जानने के लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में किसी तत्वदर्शी संत से जानने के लिए कहा है। इससे सिद्ध है कि वह ज्ञान गीता में नहीं है।

गीता चारों वेदों का संक्षिप्त रूप है। अठारह हजार वेद मंत्रों को सात सौ मंत्रों में समाने के लिए सांकेतिक शब्दों का प्रयोग किया गया है। गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में केवल इतना संकेत किया है कि ‘‘ब्रह्मणः मुखे वितता’’ यानि सच्चिदानंद घन ब्रह्म अपने मुख से वाणी बोलकर उस वाणी में (यज्ञों) धार्मिक क्रियाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करता है।

इसी का विस्तृत वर्णन ऋग्वेद के निम्न मंत्रों में किया है:-

(इन ऋग्वेद के मंत्रों में आप जी अपनी आँखों पढ़ेंगे गूढ़ रहस्य)

इन वेदमंत्रों का अनुवाद भी उन व्यक्तियों द्वारा किया गया है जो वर्तमान में अपने से अधिक वेदों का ज्ञाता किसी को नहीं मानते। महर्षि दयानंद जी से बढ़कर अध्यात्म ज्ञान व वेदों के ज्ञान में विद्वान किसी को नहीं मानते। महर्षि दयानंद जी ने अपने द्वारा लिखी पुस्तक ‘‘सत्यार्थ प्रकाश’’ में स्पष्ट लिखा है कि जो वेदों में लिखा, वह सब सत्य है। हम वेद के विरूद्ध किसी की बात को नहीं मानेंगे चाहे मेरी (महर्षि दयानंद की) ही भी क्यों न हो यानि वेद के विपरीत यदि मेरे (महर्षि दयानंद के) भी विचार क्यों न हों, उन्हें झूठे मानना। महर्षि दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि परमात्मा निराकार है। इसलिए किसी लोक में ऊपर-नीचे एक स्थान पर नहीं बैठा है या कहीं आता-जाता भी नहीं है। सर्व व्यापक होने से वह कण-कण में विद्यमान है।

आओ जानते हैं कि वेद क्या बताते हैं? ऋग्वेद के मंत्रों की निम्न फोटोकाॅपियों में जिनका अनुवाद भी महर्षि दयानंद के चेलों यानि आर्य समाजी शास्त्रियों ने किया है। आप जी देखेंगे कि वेद में लिखा है:-

परमेश्वर सर्वोपरि यानि सबसे ऊपर के लोक में (तिष्ठति) बैठा है अर्थात् वहाँ विराजमान है। (वहाँ विद्यमान है।)

प्रमाण:

ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 54 मंत्र 3 में:- (सूर्यः न) सूर्य के समान यानि जैसे सूर्य ऊपर विद्यमान है ऐसे (पुनानः) पवित्र (सोम देवः) शीतल अमर परमेश्वर (विश्वानि) विश्व के सर्व (भूवनोपर तिष्ठति) लोकों के ऊपर के लोक में बैठा है।

ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 96 मंत्र 18 में कहा है कि जो पूर्ण परमात्मा है, वह ऊपर तीसरे मुक्ति धाम में विराजमान है। (सोमः तृतीयम् धामं विराजम्)

ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 96 मंत्र 19:- इस मंत्र में कहा है कि वह परमात्मा उस (तुरीयम् धाम) चैथे धाम का भी (विवक्ति) विस्तार से भिन्न वर्णन करता है जिसमें बैठे परमात्मा ने नीचे के सर्व लोकों की रचना की थी। वह लोक समुद्र के समान है जैसे समुद्र सर्व जल स्रोतों का मूल स्रोत है।

ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 96 मंत्र 20:- इस मंत्र में स्पष्ट किया है कि वह परमात्मा इस तरह पृथ्वी पर प्रकट होता है जैसे मनुष्य (शुभ्रः तन्वम् मृजानः) शुभ्र यानि सर्वश्रेष्ठ शरीर को धारण करता है और नीचे ऐसे रहता है जैसे किसी संघ का मुखिया यानि सेना का सेनापति रहता है अर्थात् परमात्मा सतगुरू रूप में प्रकट होता है। उसके अनुयाईयों का मुखिया रूप में रहता है। ऊपर के लोक से तीव्र गति से चलकर पृथ्वी पर आता है।

ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 20 मंत्र 1:- इसमें कहा है कि वह परमात्मा कविर्देव है जो सबका रक्षक है। जिज्ञासुओं को यथार्थ ज्ञान देता है। उनकी ज्ञान से तृप्ति करता है।

ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 94 मंत्र 1:- इस मंत्र में कहा है कि वह परमात्मा (कवियन् न व्रजम्) कवियों की तरह आचरण करता हुआ इधर-उधर जाता है यानि घूम-फिरकर कविताओं, लोकोक्तियों द्वारा तत्वज्ञान बताता फिरता है।

ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 95 मंत्र 2:- इस मंत्र में कहा है कि (हरि) पूर्वोक्त परमात्मा (सृजानः) साक्षात पृथ्वी पर प्रकट होकर वाक् यानि वाणी द्वारा बोलकर (ऋतस्य) सत्य (पथ्याम्) भक्ति मार्ग की प्रेरणा करता है अर्थात् झूठी शास्त्र विरूद्ध साधना से हटने तथा शास्त्रोक्त साधना करने की प्रेरणा करता है यानि सत्य भक्ति मार्ग बताता है। (देवानाम् देवः) सर्व देव का प्रभु यानि परमेश्वर स्वयं ही (गुेानि) गुप्त (नाम अविष्कृणोति) भक्ति नाम मंत्रों की खोज करता है। (प्रवाचे) उसे प्रवचन करके यानि बोल-बोलकर बताता है।

गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में गीता ज्ञान दाता ने अपनी भक्ति करने का मंत्र तो स्पष्ट बता दिया कि ओं (ॐ) नाम है। लेकिन गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में (ब्रह्मणः) सच्चिदानंद घन ब्रह्म यानि परम अक्षर ब्रह्म की प्राप्ति की साधना का सम्पूर्ण मंत्र सांकेतिक ॐ तत् सत् यह तीन मंत्र का लिखा है। ओं (ॐ) मंत्र तो वेदों (यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 15) में तथा गीता में ब्रह्म यानि क्षर पुरूष की साधना का प्रत्यक्ष है। इन शास्त्रों में पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर ब्रह्म) की प्राप्ति का मंत्र नहीं है। केवल तत्, सत् सांकेतिक मंत्र लिखे हैं। इन मंत्रों का आविष्कार परम अक्षर ब्रह्म स्वयं करता है। उसी की जानकारी ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 95 मंत्र 2 में बताई है कि जैसे गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में तीन पुरूष कहे हैं:-

  1. क्षर पुरूष (काल ब्रह्म):- यह गीता ज्ञान देने वाला है। इसकी साधना का (मंत्र) नाम ॐ (ओं) है।
  2. अक्षर पुरूष:- इसकी साधना का नाम गीता में ‘‘तत्’’ बताया है जो सांकेतिक है। वास्तविक नाम सूक्ष्मवेद में लिखा है जो यह दास दीक्षा के समय नाम दीक्षा लेने वाले को बताता है। यह सार्वजनिक नहीं किया जाता। परंतु सूक्ष्मवेद में सार्वजनिक है।
  3. परम अक्षर पुरूष (परम अक्षर ब्रह्म):- इसकी साधना का नाम (मंत्र) सत् सांकेतिक है। इसका असली नाम (मंत्र) सूक्ष्मवेद में है। इसी परमेश्वर की अपने मुख कमल से उच्चारित वाणी कविर्वाणी (कबीर बाणी) में लिखा है जिसका वर्णन गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में किया है।

प्रसंग वेदों का चल रहा है। ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 95 मंत्र 2 का वर्णन चल रहा है। उसमें कहा है कि परमेश्वर ऐसा गुप्त नाम बताता है, उसकी साधना करने से साधक भवसागर से ऐसे तिर जाता है (अरितेव नावम्) जैसे नाव में बैठा व्यक्ति दरिया से सकुशल तिर जाता है।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मंत्र 26-27:-

इन मंत्रों में स्पष्ट किया है कि परमेश्वर अमर लोक में तीसरे पृष्ठ (स्थान) पर विराजमान है यानि वहाँ मौजूद है। (मंत्र 27)

यज्ञ यानि धार्मिक क्रिया करने वाले यजमान यानि पूजा करने वाले के लिए आकाशीय विद्युत जैसी गति करके उस स्थान से चलकर आता है। सतलोक में परमेश्वर (सतपुरूष) के एक रोम (शरीर) के बाल का प्रकाश करोड़ सूर्यों तथा करोड़ चाँदों के प्रकाश से भी अधिक है। यदि परमेश्वर उसी प्रकाशयुक्त पृथ्वी पर प्रकट हो जाए तो हमारी चर्मदृष्टि उस प्रकाश को सहन नहीं कर सकती। हम देख नहीं सकते। इसलिए परमेश्वर अपने शरीर का प्रकाश सरल करके पृथ्वी पर आता है। वरणीय पुरूषों यानि श्रेष्ठ भक्तों को मिलता है। उनके संकटों का निवारण करता है। वह परमात्मा कविर्देव है। (मंत्र 26)

ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 82 मंत्र 1-2:-

इन वेद मंत्रों में वर्णन है कि जो सर्व उत्पादक यानि जिस परमेश्वर ने सर्व ब्रह्माण्डों व प्राणियों की रचना की है, वह पापों को हरण करता है यानि पापनाशक है। वह ऊपर अपने लोक में राजा के समान सिंहासन पर विराजमान है। सिर पर मुकुट धारण किए ऊपर छत्र लगा है, देखने में राजा के समान दिखाई देता है। वह वहाँ से चलकर पृथ्वी पर आता है। वरणीय पुरूष यानि श्रेष्ठ व्यक्ति, जो दृढ़ भक्त है, उसको प्राप्त होता है। उनको साक्षात मिलता है। उसको यथार्थ भक्ति के ज्ञान वाला सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) बताता है।

वह परमात्मा अपनी अच्छी आत्माओं को ऐसे मिलता है जैसे आकाशीय बिजली उन्हीं पदार्थों पर गिरती है जिसमें उसका आकर्षण होता है। जैसे कांसी धातु के बर्तनों पर अमूमन बिजली गिरती है तथा अन्य ऐसे ही स्थानों पर गिरती है जो उसको आकर्षित करते हैं। इसी प्रकार परमात्मा अच्छी आत्माओं को मिलते हैं।

जैसे:-

  1. श्री धर्मदास जी सेठ बांधवगढ़, मध्यप्रदेश वाले को मिले।
  2. श्री नानक देव जी, सिक्ख धर्म के प्रवर्तक को मिले।
  3. संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर, हरियाणा वाले) को मिले।
  4. श्री दादू दास (अजमेर वाले) को मिले।
  5. श्री घीसा दास (गाँव-खेखड़ा, जिला-बाघपुर, उत्तरप्रदेश वाले) को मिले।
  6. श्री मलूक दास अरोड़ा को मिले।

इन सर्व संतों ने वही ज्ञान तथा भक्ति की विधि बताई जो सूक्ष्मवेद में परमात्मा ने स्वयं आकर बताई है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि चारों वेदों व गीता जी का ज्ञान तथा इन संतों का ज्ञान सूक्ष्मवेद से मिलता है। परंतु पुराणों तथा उपनिषदों का ज्ञान कुछ वेदों से मिलता है। अधिक काल ब्रह्म की प्रेरणा से मिथ्या ज्ञान लिखा है। जैसे काल ब्रह्म ने शिव पुराण (खेमचन्द श्री कृष्ण दास प्रकाशन-मुंबई से प्रकाशित) भाग-1 के विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 तथा 9 में अपने पुत्रों ब्रह्मा तथा विष्णु को अपने लिंग (गुप्तांग) के आकार का पत्थर का लिंग प्रकट करके उसको स्त्री की लिंगी (गुप्तांग) के आकार की पत्थर की योनि प्रकट करके उसमें प्रवेश करके छोड़ दिया और कहा कि इन दोनों को अभेद रखकर यानि इसी स्थिति में रखकर पूजा करना, तुम्हारा कल्याण हो जाएगा। इस तरह की साधना शास्त्रविरूद्ध होने से हानिकारक है। बेशर्मी भी है। यदि यह पूजा शास्त्र सम्मत होती तो भी कर लेते, परंतु यह पूर्ण रूप से व्यर्थ है। (ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 82 मंत्र 1)

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मंत्र 2:-

इस मंत्र में भी यही प्रमाण है कि परमात्मा यथार्थ ज्ञान का उपदेश करने के लिए महापुरूषों को मिलते हैं और अत्यंत गतिशील पदार्थ के समान यानि जैसे आकाशीय बिजली पूरी गति (full speed) से पृथ्वी पर आती है, परमात्मा इसी तरह पृथ्वी पर आते हैं। वह परमात्मा कविर्देव हैं।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 16-20:- इन मंत्रों में बताया है कि:-

मंत्र 16 में प्रश्न किया है कि परमात्मा का गुप्त नाम क्या है? मंत्र 17 में कहा कि परमात्मा प्रत्येक युग में एक बार शिशु यानि बच्चे के रूप में प्रकट होता है। उस समय लीला करते हुए बड़े होते हैं। तब (काव्येना) काव्यों द्वारा यानि दोहों, चैपाईयों, शब्दों, कविताओं, लोकोक्तियों के रूप में (कविर्गिर्भि) कविर्वाणी (हम इसे अपनी भाषा में कबीर बाणी कहते हैं) में यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान यानि सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) ऊँचे स्वर में बोलता है। उसे लिखा जाता है। वह सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान है। उस परमात्मा का नाम कविर्देव यानि कबीर परमेश्वर है। मंत्र नं. 18, 19, 20 का सरलार्थ पूर्व में कर दिया है।

ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 1 मंत्र 9:-

इस मंत्र में कहा कि परमेश्वर जब शिशु रूप में पृथ्वी पर प्रकट होता है, उस समय उनकी परवरिश यानि बालक रूप में पोषण कंवारी गायों द्वारा होता है। बच्छिया (1 ) वर्ष की आयु की गाय की बच्ची) परमेश्वर जी के आशीर्वाद से बैल से गर्भ धारण किए बिना ही दूध देती है। उस दूध को बालक रूप लीलाधारी परमेश्वर पीता है।

आप जी को विस्तार से बताया है कि सूक्ष्मवेद कैसे प्राप्त हुआ। आप जी देखें अपनी आँखों से वेद के उपरोक्त मंत्रों को फोटोकापियाँ:-

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